फ़रवरी उन दिनों की
वो फ़रवरी का महीना....चारों तरफ ठंडा वातावरण....
मानो मन को भी शीतलता प्रदान कर रहा था...
इतने सुनहरे मौसम में...प्रेम का दस्तक़ देना लाज़मी था...
अठारह फ़रवरी की रात....दो अजनबी इन्टरनेट के माध्यम से करीब आए थे.....पहली बार किसी की पसंद बनने की ख़्वाहिश कुछ इस क़दर व्यक्तित्व पे हावी हुई की अपनी अस्मिता को ही दाव पे लगा दिया था...मगर प्रेम अब भी दूर था...शायद इज़हार के पीछे ही कहीं छुपा हुआ था...
फ़ाल्गुन का महीना आरंभ हो रहा था.....दोनों पर एक दूसरे का रंग साफ़ तौर से महसूस किया जा सकता था।।
उनका दरवाज़े पे अचानक से दस्तक़ देना...मानो दिल में दस्तक़ देने के सामान था.....होंठों पे मुस्कराहट... दिल में चाहत...आंखों में शर्म और वो छुपती छुपाती नज़र.. ये सब फ़ाल्गुन के महीने का असर था या उनकी चाहत का...इस बात का अंदाज़ा लगाना सरल था... खैर मैंने उस पल में एक मूक प्राणी का जीवन व्यतीत किया था...उस दिन ये महसूस हुआ की किस प्रकार एक मूक प्राणी अपने अंदर अनश्वर प्रेम को समेटे हुए जीवन के अद्धभुत पलो को पराकाष्टा तक पहुंचाता है।।
देखते ही देखते...निगाहे बिना दिल की इजाज़त के अपना काम बख़ूबी ढंग से पूरा करने में जुट गयीं.....पहली बार उन्हें जब देखा था...अर्थात सिर्फ देखा था....आस पास एक ठहराव सा था...उस पल न भूत का पश्चताप.. न भविष्य की चिंता...वर्तमान में जीवन को जीना वास्तव में पहली बार महससू हुआ था।।।
वो पहली मुलाक़ात ना जाने कब आख़िरी मुलाक़ात में परिणित हो गयी...इस बात का कारण पूछने पर जवाब मिला....''मज़बूरी''
वास्तव में इस शब्द ने मेरी अंतरात्मा को झकझोरा था....बिना कोशिश किये हार मान कर....मज़बूरी नामक नकाब ओढ़ लेना...एक पुरुष प्रधान समाज पर कलंक के भांति था।।
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