कल्पना का सफ़र
HELLOदोस्तों,
इंसान के पास एक अदभुत शक्ति है वो है ''कल्पना'',उनकी क्षमता का आधार,जिसके ऊपर उसके सभी सपने और अरमान टिके होते है । और एक ही चीज को कई तरह से देखने का नज़रिया भी कल्पना शक्ति से मिलता है ।
बस का सफ़र भी उसी अलग कल्पना का हिस्सा है , जिसे बस की भीड़ भाड़ में आपने शायद अनदेखा कर दिया हो , या आपके हैडफ़ोन ने आपकी कल्पना की आवाज को आप तक पहुचने ही नही दिया शायद ?
ये भी हो सकता है बस में लड़ाई ,ट्रैफिक,गर्मी , सीट न मिलने की वजह से आपकी कल्पना आपके माथे से नीचे आने की कोशिश नही करती , और भी बहुत से कारण हो सकते है ।
आगे चलते है बता कल्पना की हो रही थी, तो बस का सफ़र की तुलना अपनी जिंदगी से अपने कल्पना में कि जा सकती है और आपको पता चलेगा कि उस सफर में और आपकी जिंदगी में कोई खास फर्क नही है ।
हर बस स्टॉप से कोई न कोई चढ़ता है और उतरता भी बिलकुल वैसे जैसे किसी का जन्म लेना और मरना , उसके बाद वो टिकेट के रूप में अपना भविष्य खरीदता है ''क्या करे इंसान है !''जैसे टिकेट में एक जगह तय होती है वैसी ही आपका भविष्य भी तय होता है और एक मोड़ पर आ कर आपको उससे उतारना भी पड़ता है , उसके बाद आपको आपकी की हैसियत के हिसाब से बैठेने की जगह मिल जाती है जिन्हें नही मिली उन्हें ग़रीब और पिछड़ा समझ सकते है , रास्ते में एक हमसफर भी मिलता है और जिन्दगी आपने सफर पर आगे चलती है । वक़्त बीतता है रास्ते में होने वाला ट्रैफिक को आप जिंदगी में आने वाली समस्या समझ लीजिए जो थोड़ी थोड़ी दूर पर red light के रूप में मिलती रहती है पर कोई नही red light है एक तरफ तो green light की खुशियां भी थोड़े समय में मिल ही जाती है।
खैर सफर आगे चलता है और कुछ लोगों अपने मुकाम पर उतर जाते है और हमे उनके बिना अपना सफ़र आगे बढ़ना पड़ता है पर फिर एक और को उसकी जगह बैठेने का मौका मिल जाता है , पर आखिर में बस से सब को कही न कही उतारना तो होगा ?
आखिर ड्राइवर यमराज और उनके सेवक कन्डक्टर चित्रगुप्त जो आपके सफर के साथी है और आप पर नज़र बनने हुए है उनको अपने भी काम करने होते है ,और यही नही इस ''बस जैसी दुनिया'' को भी कही न कही, कभी न कभी किसी मोड़ पर आ कर रुकना पड़ेगा ।
बस के सफर हो या जिंदगी का सफ़र दोनों में समानता सिर्फ कल्पना शक्ति से ही समझ सकते है! कोई बड़ी कोशिश नही करनी ये सब समझने के लिए ,पर जब भी बस से जा रहे हो और खड़ी की सीट मिल जाए तो अपना हैडफ़ोन जरा नीचे रखे और खुद को समय दे,शायद एक नयी कल्पना एक नही सोच और एक बेहतर खुद से मिल का मौका आपको मिले और तब शायद आपका दुनिया को देखने और समझने का नज़रिया ही बदल जाए ।
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-Az👤
【Avoice63】°©
Good.... I like it
ReplyDeleteMeans a lot
DeleteThanku :)