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Showing posts from February, 2017

EK DIN KOI

बस यु ही एक दिन एक अजनबी सा कोई आ जाता है जिंदगी बन कर जो कहता खुद को दोस्त है मेरा समहाल लेता है जाने क्यू कई बार गिरने पर मुझको समझने की कोशिश करता है कई बार, हँसने की कोशिश करता है कई बार, जिसकी बातों में मेरे लिए परवाह झलकती है जिसकी ख्वाहिशे मेरी क़िस्मत को बदलने की है बिना किसी हक़ के ही हक़ जतना उनकी आदत है बिना कुछ कहे सब समझ जाने की आदत है उनकी। बस यू ही एक दिन एक अजनबी सा कोई आ जाता है जिंदगी बन कर......  :आप को हमारा ब्लॉग  कैसा लगा हमें ज़रूर बताए ,मिलते है अगले ब्लॉग के साथ नमस्कार ।।   :We will glad with your valuable Suggestions and reviews, thank you ! -Az👤 【Avoice63】°©

BADALTI HAWAA !

बदलती हवा  दोस्तों हाँ जी राम-राम । कृप्या राम-राम को साम्प्रदायिकता से न देखे यह देश विभिन्ता में एकता का प्रतीक है , जैसे तेज बारिश के बाद निकाला इंद्रधनुष 7 अगल-अलग रंग पर एक कतार में बिलकुल वैसा । तो बात थोड़ी गंभीर है , या कहे की मौसम में कुछ ऐसा है इस महीने जगह-जगह दीवार के पीछे , खिड़की से, छत के मुहाने से व बाल्कनी पर से आज कल कोई छुप कर कोई ताक लगाए बैठा हुआ-सा महसूस होता है ! बड़ी नाज़ुक स्तिथि है पास की दुकानों पर ग्रेनेट जैसे गुब्बरे , A K 47 जैसे पिचकारियाँ , वाटर टैंक , रंग  की गोलियां सस्ते दामों में मौजूद है जो किसी को भी डर सकते है । जी बिल्कुल ज़नाब मौसम ही कुछ ऐसा है , आज कल ''लोग सर उठा कर चलने लगे है '' महीने का आलम ही कुछ ऐसा है सभी भेद-भाव ,अमीरी गरीबी,बच्चा,नवजवान,महिलाओं,बुजुर्गो सभी को सर उठाने का मौका दे रहा है , कारण वही डर है,और आप जानते है कि किस चीज के डर की बात में कर रहा हूँ। चलिये कोई नही इसी बहाने एक समानता का माहौल समाज में देखने को मिलता है और सब से ज्यादा इस समानता का असर मथुरा में देखने को मिलता है जहाँ 15 से 20 दिन तक अलग

KHABAR !

ख़बर  HELLO दोस्तों, ''सोशल मीडिया'' का महत्त्व हर दिन के साथ बढ़ता जा रहा है , कारण सिर्फ इनफार्मेशन और नॉलेज नही बल्कि कनेक्टिविटी है , पूरी दुनिया को ''एक समुदाय'' बनने की और यह तकनीक ''वैश्वीकरण'' की देंन है। आप उस नीले रंग वाले F के साइन से परिचित जरूर होंगे और उस आसमानी रंग की चिड़िया से भी, जो तेजी से आम लोगो की खासतौर और टीनेजर्स की लाइफस्टाइल का हिस्सा बन चुकी है । कुछ लोगों से तो ये एक लाइलाज बीमारी की तरह चिपके रहता है, और ये बीमार लोग आसानी से लाइनों में ,रोड पर, रेस्टुरेंट में , मेट्रो ,बस , गाड़ी , घरों और पार्कों आदि में सर झुके मिल सकते है , और ''ध्यान से'' इनके पास  न जाये दुरी बना कर रखे क्यू की सेल्फी नाम का वायरस इन सभी के फ़ोन से निकलता है जो आपको भी अजीब अजीब हरकते करने पर मजबुर कर सकता है फिर चाहे आप कितना भी होश में क्यू न हो ! बोर्ड परीक्षा का दौर बस शुरू होने ही वाला है और मजे की बात ये है कि सोशल साइट से अकाउंट डिलीट करने का सिलसिला भी शुरू हो गया है जिसमे ज्यादातर स्कूली छात्र शामिल ह

AKHIR CHUNAV KISKA ?

आख़िर चुनाव किसका ? Hello, दोस्तों       एक बड़ी ही रोमांचक मेले के बारे में बताने जा रहा हूँ शायद आप सब उससे परिचित जरूर होंगे। नही,में कुंभ के मेले की बात नही कर रहा हूँ जो हर 12साल बाद मनाया जाता है मैं बात कर रहा हूँ उसकी जो हर 5 साल में एक बार आता है और उसके आखिरी साल मतलब 5वे साल लोग और कुछ टोपी वाले झंडे और गड़िया ले कर आपकी घर के पास वाली रोड या पार्क पर लोकतंत्र की दुहाई देने कीे शुरुवात करते है । हम भी क्या करे बड़े ही आशावादी है ? सिर्फ दुहाई ही दे सकते है कि शायद कभी तो , वो मशीन शायद कोई देव दुत ले कर आये जो सब ठीक कर दें । चलिये आश और निराश की बात छोड़िये और अब एक सवाल की आख़िर में चुनाव किसका? मै किसी सफ़ेद कुरता पहननें वाले को चुनने की बात नही कर रहा हूँ ,बल्कि इस बात से हैरान हूं कि आख़िर में कौन किस का चुनाव करता है ? हम उनका चुनाव करते है कि वो हमारा चुनाव करते है ? अब तक शायद समझ ही गया होंगे की यहाँ बात हो रही शोषण की , की किस तरह चुनाव और चुनावी प्रक्रिया बदलती जा रही है पर लोगों की हालत में सुधार दिखाई नही पड़ रहा है , लोग विश्वास करते है वादों और रैलियों

MANA SHABD KAMZOR HAI !

माना अभी शब्द कमजोर है बहुत , पर परवाह नही करता कभी इस बात की लिखने बैठ जाता हूं ऐसे ही कई बार और पहुच जाता हूं कही किसी और जहान में अपनी सोच और सीमाओं से भी आगे सोचता हूँ और कुछ समझता हूँ फिर समझता हूं तो मानता हूँ और मानता हु तो कुछ जनता हूँ और एक नयी राह  बुनता हूँ माना शब्द कमजोर है  बहुत, पर समझ लेता हूँ कुछ अनसुनी और कुछ अनकही बात को भीे जो वो कहना चाहते थे पर कह न सके और लिखने बैठ जाता उसे अपनी जुबानी माना कोई स्थान नही मेरा फिर भी कोई अपमान भी नही ये जनता हूँ माना शब्द कमजोर है बहुत...  :आप को हमारा ब्लॉग  कैसा लगा हमें ज़रूर बताए ,मिलते है अगले ब्लॉग के साथ नमस्कार ।।   :We will glad with your valuable Suggestions and reviews, thank you ! -Az👤 【Avoice63】°©

EK BURI AADAT !

एक बुरी आदत । HELLO,दोस्तों जब मैं  छोटा था, शिक्षा एक रौशनी की तरह थी मेरे लिए शायद आपके लिए भी होगा? ज़रूर होगा, तभी तो बस उसी रौशनी को ढूढ़ने मैंने 4 घेरे को छोड़ बस कुछ ही दूर अपने घर से एक नयी आदत बना ली वैसी ही जैसे क्रिकेट खेलना ,हाथ पकड़ कर चलना, सब को नमस्ते करना,टॉयलेट लगने पर बता देना, कहानी सुनना और कुछ वैसे ही, बस फर्क क्या था उन आदतो में ,ये मैं आज जा कर समझ हूँ। पता नही आप समझे न समझे जो मै आज महसूस कर रहा हूँ शायद उस कॉपी के कागज़ से ऊपर आना  ही वो रौशनी थी जिसे मैंने अपने नंबरों के बीच देखा ही नही, या शायद  परिवार की उम्मीदों में छुप सा गया था। मैंने आज जाना की क्यू 6वी क्लास से 12वी क्लास में प्रोजेक्ट मिलने पर मेरे नम्बर तो ठीक थे पर वो कुछ सीख जाने को अनुभव नही मिला । हो सकता है शायद x का मान निकालने से, नमक के क्रियाशीलता से, राष्टीय आय और समाजवाद  की टिप्पड़ी करने से उसको समझना ज्यादा जरूरी था। मैंने पाया कि कैसे मैंने अपने अर्थों को किताबों की अर्थों के नीचे दबा रखा था । कैसे मैंने अपने सवाल को हल करने के तरीके को किसी और के 5 स्टैप्स के नीचे रौंद दिया था।

THE UNKNOWN YOU : PAPA :)

मैं आपका ही बेटा हूँ पर न जाने क्यू मुझे मां की तरह प्यार करते नही आप ?   शायद वो डांट और गुस्सा भी   प्यार से कम नही था   ये आज मैंने जाना ।।   मैं आपका ही हिस्सा हूँ   आपका ही स्वरुप,  पर माँ जैसा खाना कभी  अपने हाथों से खिलाया नही।।   पर रात को कही भी सो जाने पर  बिस्तर पर आप ही लिटाते थे,   ये आज मैंने जाना ।। जब मुश्किल थी जब दुःख था तब माँ की तरह सहलाया नही पर न कुछ कहें आप हमेशा साथ रहे    ये आज मैंने जाना ।।😍👪😍👪  :आप को हमारा ब्लॉग  कैसा लगा हमें ज़रूर बताए ,मिलते है अगले ब्लॉग के साथ नमस्कार ।।   :We will glad with your valuable Suggestions and reviews, thank you ! -Az👤 【Avoice63】°©

A Question?

मैं कौन हूँ ? एक अहम सवाल है जो अक्सर पूछता हूं मैं खुद से की क्यू मैं खुद से ही अंजान? जाने कब तक, जाने क्यू ? एक अजीब सी पहेली है जो खेलती अठखेली है जाने क्यू हूँ ऐसा?, ये तो वक़्त ही जानता है और जानते है वो रिश्ते जिनसे मिल कर मैं बना हूँ, जहाँ तक कुछ जीतने की बात है लोग जीत जाते है सब कुछ रिश्तों को छोड़ कर ,और मैं हार जाता हूँ रिश्तों को देख कर शायद यही मेरी कमज़ोरी, शायद यही मेरा स्वभाव , शायद इसलिए में शांत हूँ ,और शायद तभी खुद से अनजान भी। ।  :आप को हमारा ब्लॉग  कैसा लगा हमें ज़रूर बताए ,मिलते है अगले ब्लॉग के साथ नमस्कार ।।   :We will glad with your valuable Suggestions and reviews, thank you ! -Az👤 【Avoice63】°©