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क्या आप ,हज़रत निजामुद्दीन औलिया की जूती की कहानी जानते है।

हज़रत निजामुद्दीन की जूती



 Hello , दोस्तों ।


इस ब्लॉग के जरिये से में एक बेहद रोचक कहानी बताने जा रहा हूँ ।कहानी गुरु और शिष्य की है कुछ वैसी जैसीे महाभारत में गुरु द्रोण और शिष्य एकलव्य की थी ।
  
  ये कहानी है , एक मशहूर सूफी संत (चौथे चिस्ती संत) जिन्हें खलीफा का दर्जा प्राप्त हो चूका था वो थे " हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया"(1236-1325) और उनके प्रिय शिष्य "अमीर खुसरो" की (1253-1325)जिनका सम्बन्ध राजघराने के साथ हुआ करता था और 8 राजों को अपनी सेवाएं पहले दे चुके थे । पर किसी वजह से अपनी नौकरी त्याग दी और वैराग और संतों की तरह जिंदगी जीने की सोची , और अपने परिवार और खूब सारे सामान(धन) और ऊँटो के साथ हज़रत निजामुद्दीन के आश्रम के लिए निकल पड़े ।
   
   तो कहानी कुछ इस तरह हुई की हज़रत निजामुद्दीन लोगों को वैराग और सहनशीलता की शिक्षा दिया करते थे अपने आश्रम (कुटियां) में ,तो एक आदमी अपनी एक परेशानी ले कर हज़रत साहब के पास आया और उसने बोला की मेरी बेटी की शादी करवानी है और वह बहुत गरीब है और पैसों की सख्त जरूर है ,नही तो मेरी बेटी की शादी नही हो पाएगी। 



    इस बात पर हज़रत निजामुद्दीन ने बोला कि  मैं तो संत हूँ मैं और पैसे हम अलग अलग है ,बाकी तुम यहाँ दिल लगा कर काम करो तो सब ठीक हो जाएगा और शायद तुम यहाँ से कुछ हासिल भी कर सको ।
  पैसों की उम्मीद में उसने आश्रम में काम करना शुरु किया , तीन दिनों तक रोज उसने हज़रत साहब के पैर भी दबाए और अच्छी सेवा कि और तीन दिन बाद बोला कि हज़रत साहब कल मेरी बेटी की शादी है और मुझे पैसे हर हाल में चाहिए इस बात पर हज़रत साहब ने अपने पैर से एक फटी हुई जूती उस आदमी को दी और बोला मैं यही दे सकता हूँ इसे ले जा ।
   आदमी भी दुखी मन से खुद को कोसता हुआ जूती उठा कर चल देता है , रास्ते में जब जा रहा होता है तो दूसरी तरफ से अमीर ख़ुसरो और कई ऊँटो पर उनका काफिला हज़रत साहब से मिले को जा रहा था । ख़ुसरो ने झट से अपने गुरु की जूती पहचान ली और उस आदमी से सारी बात मालूम कि तो पता चल कि ये जूती सच में हज़रत साहब की है ।
   उसके बाद अमीर ख़ुसरो ने एक ऊँट पर अपनी बीबी को बिठाया और बाकि सारे ऊँट और सारा सामान(धन) उस आदमी को दे दिया और वो जूती ख़रीद ली ।



आश्रम पहुँचने पर हज़रत साहब ने अमीर ख़ुसरो से सवाल किया कि "कही मेरी जूती तुम्हे ज्यादा मंहगी तो नही पड़ी ?" इस पर आमिर ख़ुसरो मुस्कुराते हुए अपने कपड़ों में हजरत साहब की जूती पोछ कर हज़रत साहब के पैरों में पहना दी और बोलो "नही" और बताया कि एक जूती के बदले में उन्होंने उस आदमी को क्या-क्या दिया , इस बात से खुश हो कर हजऱत साहब ने कहा
 की "इसकी क़ब्र मेरे क़ब्र के पास ही बनाना" ! 

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हज़रत निजामुद्दीन औलिया और उनके शिष्य अमीर खुसरो पर और पढ़े । मिलते है आगे ब्लॉग में
नमस्कार ।।

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