बदलती हवा
हाँ जी राम-राम ।
कृप्या राम-राम को साम्प्रदायिकता से न देखे
यह देश विभिन्ता में एकता का प्रतीक है , जैसे तेज बारिश के बाद निकाला इंद्रधनुष 7 अगल-अलग रंग पर एक कतार में बिलकुल वैसा ।
तो बात थोड़ी गंभीर है , या कहे की मौसम में कुछ ऐसा है इस महीने जगह-जगह दीवार के पीछे , खिड़की से, छत के मुहाने से व बाल्कनी पर से आज कल कोई छुप कर कोई ताक लगाए बैठा हुआ-सा महसूस होता है ! बड़ी नाज़ुक स्तिथि है पास की दुकानों पर ग्रेनेट जैसे गुब्बरे , A K 47 जैसे पिचकारियाँ , वाटर टैंक , रंग की गोलियां सस्ते दामों में मौजूद है जो किसी को भी डर सकते है ।
जी बिल्कुल ज़नाब मौसम ही कुछ ऐसा है , आज कल ''लोग सर उठा कर चलने लगे है '' महीने का आलम ही कुछ ऐसा है
सभी भेद-भाव ,अमीरी गरीबी,बच्चा,नवजवान,महिलाओं,बुजुर्गो सभी को सर उठाने का मौका दे रहा है , कारण वही डर है,और आप जानते है कि किस चीज के डर की बात में कर रहा हूँ। चलिये कोई नही इसी बहाने एक समानता का माहौल समाज में देखने को मिलता है और सब से ज्यादा इस समानता का असर मथुरा में देखने को मिलता है जहाँ 15 से 20 दिन तक अलग -अलग़ तरह की होली खेली जाती है , कही लाठी से , लडू से, गौबर से, और हाँ रंगों से तो खिली जाती ही है ।
लोगो को संदहे की नज़रों से देखना शुरू हो गया है आज कल पड़ोसी के बच्चों पर भी शक़ होता है कही कोई हथियार तो नही छुपा रखा है कही पीठ के पीछे ।
जो भी हो मज़ा ले इस मौसम का साल में एक बार ही आता है , उसकी भावना में रंग लीजिये खुद को । ये उन्ही मौकों में से एक है जब हर एक रंग एकता के सफ़ेद रंग में डूब जाता है । और देश को सीखता है वही दो शब्द जिसे 42वा संशोधन के जरिए भारत के संविधान में जोड़ा गया था ।
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-Az👤
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