एक बुरी आदत ।
HELLO,दोस्तों
जब मैं छोटा था, शिक्षा एक रौशनी की तरह थी मेरे लिए शायद आपके लिए भी होगा? ज़रूर होगा, तभी तो बस उसी रौशनी को ढूढ़ने मैंने 4 घेरे को छोड़ बस कुछ ही दूर अपने घर से एक नयी आदत बना ली वैसी ही जैसे क्रिकेट खेलना ,हाथ पकड़ कर चलना, सब को नमस्ते करना,टॉयलेट लगने पर बता देना, कहानी सुनना और कुछ वैसे ही, बस फर्क क्या था उन आदतो में ,ये मैं आज जा कर समझ हूँ।
पता नही आप समझे न समझे जो मै आज महसूस कर रहा हूँ शायद उस कॉपी के कागज़ से ऊपर आना ही वो रौशनी थी जिसे मैंने अपने नंबरों के बीच देखा ही नही, या शायद परिवार की उम्मीदों में छुप सा गया था।
मैंने आज जाना की क्यू 6वी क्लास से 12वी क्लास में प्रोजेक्ट मिलने पर मेरे नम्बर तो ठीक थे पर वो कुछ सीख जाने को अनुभव नही मिला । हो सकता है शायद x का मान निकालने से, नमक के क्रियाशीलता से,
राष्टीय आय और समाजवाद की टिप्पड़ी करने से उसको समझना ज्यादा जरूरी था।
मैंने पाया कि कैसे मैंने अपने अर्थों को किताबों की अर्थों के नीचे दबा रखा था । कैसे मैंने अपने सवाल को हल करने के तरीके को किसी और के 5 स्टैप्स के नीचे रौंद दिया था।
न जाने किसी तरह की कमी का एहसास उसमे भरा हुआ था जो न जाने कब जा कर पूरा होगा? शायद तब हो जब मैं गरीब लिखू तो गली में आने वाले सिर्फ एक भिखारी की याद नही आये बल्कि वो क्यू है वो समझ आए।।
पर काग़ज़ से ऊपर उठना काफी मुश्किल है
इसमें बुराइयां भी है ,जो उन्ही लोगों को दिखी देती है जो रौशनी को बाटने का कम करते है और उनके साथ वो आँख वाले अन्धे भी होते है जो वो रौशनी पाना चाहते है।
तो थोड़ा समझ कर थोड़ा समहाल कर क्यू की हो सकता है ये रौशनी की पाना शायद ''मेरी बुरी आदत हो''।।
:आप को हमारा ब्लॉग कैसा लगा हमें ज़रूर बताए ,मिलते है अगले ब्लॉग के साथ नमस्कार ।।
:We will glad with your valuable Suggestions and reviews, thank you !
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-Az👤
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